मैं एक बीज हूँ खोया सा
बेखबर गर्भ में सोया सा।
बरसातों की देर है बस
फिर अंकुरों का रोयाँ सा।
मैं पवन वेग में कण-कण सी
मैं व्रुक्ष-पात में बूँद-बूँद।
मैं गीले नभ के छोर छिपी
हिमकण की आँखें मूँद-मूँद।
मैं श्यामल नभ की छाया हूँ
मैं उस असीम की काया हूँ।
जो सप्तरंग में सिमट गयी
वह इंद्रधनुष की माया हूँ ।
किरणों की उष्म दहक हूँ मैं
माटी से लिपटी महक हूँ मैं ।
हाथ में विहग के हाथ दिये
आकाश जगाती चहक हूँ मैं ।
लेखिकाः मनीषा साधू
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