Monday, August 30, 2010

जीवन की आपाधापी में : Nice Hindi Poem : Must read

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला


कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ


जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।


जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा


मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,


हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला


हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में


कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,


आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?


फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा


मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,


क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,


जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,


जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,


जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,


जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला


कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ


जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला। 

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